Tuesday, December 25, 2018

एक लड़की पहेली सी




टाइपिंग कोचिंग सेंटर में विजय का पहला दिन था। वह अपनी सीट पर बैठा टाइप सीखने के लिए नियमावली पुस्तिका पढ़ रहा था। तभी उसकी निगाह अपने केबिन के गेट की तरफ गई। कजरारे नयनों वाली एक साँवली लड़की उसकी केबिन में आ रही थी। 

लड़की उसकी बगल वाली सीट पर आकर बैठ गई। टाइपराइटर को ठीक किया और टाइप करने में मशगूल हो गई। विजय का मन टाइप करने में नहीं लगा। वह किसी भी हालत में लड़की से बातें करना चाह रहा था। वह टाइपराइटर पर कागज लगाकर बैठ गया और लड़की को देखने लगा। लड़की की अँगुलियाँ टाइपराइटर के कीबोर्ड पर ऐसे पड़ रही थीं जैसे हारमोनियम बजा रही हो। 
क्या देख रहे हो? 'थोड़ी देर बाद लड़की गुस्से से बोली।आपको टाइप करते हुए देख रहा हूँ। 
यहाँ क्या करने आए हो?
टाइप सीखने। 
ऐसे सीखोगे? लड़की के स्वर में तल्खी बरकरार थी।

मेरा आज पहला‍ दिन है, इसलिए मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। आप टाइप कर रही थीं तो मैं देखने लगा कि आपकी अँगुलियाँ कैसे पड़ती हैं कीबोर्ड पर। आपको टाइप करते देखकर लगा मैं भी सीख जाऊँगा। यदि इसी तरह मुझे ही देखते रहे तो आपकी यह मनोकामना कभी पूरी नहीं होगी।'
लड़की फिर टाइप करने में जुट गई। विजय भी कीबोर्ड देखकर टाइप करने लगा। टाइप करने में उसका मन नहीं लग रहा था। वे बेचैनी-सी महसूस कर रहा था। दस मिनट बाद ही उसने टाइपराइटर का रिबन फँसा दिया। 
'रिबन तो फँसेगा ही जब ध्यान कहीं और होगा...।'
लड़की उसके टाइपराइटर को थोड़ा अपनी ओर खींचकर रिबन ठीक करने लगी। इसी बीच रिबन नीचे गिर गया। वह उसे उठाने के लिए झुकी तो उसके गले से चुन्नी गिर गई। रिबन उठाने के‍ लिए विजय भी झुका था। उसकी निगाह अकस्मात ही लड़की के उरोजों पर चली गई। वह सकपका गया।
'लो, ठीक हो गया।' लड़की ने कहा त उसकी चेतना लौटी। लड़की फिर टाइप करने में लग गई, लेकिन विजय का मन टाइप में नहीं लगा। वह लड़की से बात करने की ताक में ही लगा रहा।

'मन नहीं लग रहा है?' अचानक लड़की ने उससे पूछा तो बाँछें खिल गईं।
'लगता है कि सीख भी नहीं पाऊँगा।'
आसार तो कुछ ऐसे ही दिखते हैं।आपका नाम? विजय ने बात को बढ़ाने के लिए सवाल कर दिया।
सरिता।
अच्छा नाम है। 
लेकिन मुझे इस नाम से नफरत है।
क्यों? 
कोई एक कारण हो तो बताएँ। यह कहते हुए सरिता अपनी सीट से उठी और पर्स कंधे पर टाँगते हुए केबिन से बाहर निकल गई। विजय उसे जाते हुए देखता रहा। उसके जाने के बाद उसने टाइपराइटर पर डाली। टाइपराइटर उसे उदास लगा। 
और दुनिया बदल गई
इसी दिन से विजय हवा में उड़ने लगा। रातों को छत पर घूमने लगा। तारे गिनता और उनसे बातें करता। चाँदनी रात में बैठकर कविताएँ लिखता। गर्मी की धूप उसे गुनगुनी लगने लगी। दुनिया गुलाबी हो गई तो जिंदगी गुलाब का फूल। आँखों से नींद गायब हो गई। वह ख्‍यालों ही ख्‍यालों में पैदल ही कई-कई किलोमीटर घूम आता।
अपनी इस स्थिति के बारे में उसने अपने एक दोस्त को बताया तो उसने कहाँ 'गुरु तुम्हें प्यार हो गया है।' दोस्त की बात सुनकर उसे अच्छा लगा। 
अगले दिन विजय ने सरिता से कहा कि आप पर एक कविता लिखी है। चाहता हूँ कि आप इसे पढ़ें।
'यह भी खूब रही। जान न पहचान। तू मेरा मेहमान। कितना जानते हैं आप मुझे?' 
जो भी जानता हूँ उसी आधार पर लिखा हूँ।सरिता उसकी लिखी कविता पढ़ने लगी।
सरिता,
कल-कल करके बहने वाली जलधारा
लोगों की प्यास बुझाती
किसानों के खेतों को सींचती
राह में आती हैं बहुत बाधा
फिर भी मिलती है सागर से
उसके प्रेम में सागर
साहिल पर पटकता है सिरउनके प्रेम की प्रगाढ़ता का प्रमाण
पूर्णमासी की रात में
उठने वाला ज्वार-भाटा
सरिता है तो सागर है 
सरिता के बिना रेगिस्तान हो जाएगा सागर
सागर के प्रेम में 
सरिता लाँघती है पहाड़, पठार
और मानव निर्मित बाधाओं